पुलिस कब गिरफ़्तार करती है, गिरफ्तारी के बाद क्या प्रक्रिया होती है और सजा कब मिलती है

पुलिस कब गिरफ़्तार करती है, गिरफ्तारी के बाद क्या प्रक्रिया होती है और सजा कब मिलती है
पुलिस किसी व्यक्ति को तभी गिरफ़्तार करती है जब उसके पास उस व्यक्ति के खिलाफ तर्कसंगत शक, मान्य सूचना या शिकायत हो कि उसने कोई cognizable (गंभीर) अपराध किया है या अपराध में उसकी भागीदारी संदिग्ध है। भारतीय दण्ड प्रक्रिया संहिता (CrPC) की धारा 41 में ऐसे मामलों का विवरण रखा गया है 

— यानी जब पुलिस बिना वारंट के गिरफ्तार कर सकती है। गिरफ़्तारी का अधिकार तभी इस्तेमाल करना चाहिए जब पुलिस के पास कुछ ठोस कारण हों—सिर्फ शिकायत आ गई इसलिए स्वतः गिरफ्तारी करना उचित नहीं माना जाता। कभी‑कभी पुलिस के पास पर्याप्त जानकारी होती है पर गिरफ्तारी करना आवश्यक न लगे 

— ऐसे मामलों में कानून के अनुसार पहले व्यक्ति को 41A के नोटिस के माध्यम से बुलाकर पूछताछ करने का निर्देश है। Section 41A का उद्देश्य गलत या अनावश्यक गिरफ्तारी से बचाना है: यदि पुलिस समझती है कि गिरफ्तारी जरूरी नहीं है तो वह संबंधित व्यक्ति को नोटिस भेजकर पूछ सकती है और यदि वह नोटिस का पालन करता है तथा सहयोग करता है तो सामान्यतः उसे गिरफ्तार नहीं किया जाना चाहिए, जब तक कारण रिकॉर्ड न कर लिए जाएँ।  सुप्रीम‑कोर्ट के निर्देश (Arnesh Kumar वाद) ने भी पुलिस को सावधानी बरतने के लिए कड़े निर्देश दिए हैं। कोर्ट ने स्पष्ट कहा कि पुलिस को हर बार गिरफ्तार करना नहीं चाहिए, विशेषकर उन मामलों में जहां सजा सात वर्षों तक की है या उससे कम 

— पहले लिखित कारण देखें, नोटिस दें और गैर‑जरूरी गिरफ्तारी से बचें। इस निर्णय ने गिरफ्तारी की प्रक्रिया में पारदर्शिता और जवाबदेही बढ़ाने का लक्ष्य रखा है। गिरफ़्तारी के बाद क्या होता है 

— समय‑सीमा और रिमांड यदि किसी को गिरफ्तार किया जाता है तो पुलिस को उसे 24 घंटे के भीतर नज़दीकी मजिस्ट्रेट के समक्ष पेश करना अनिवार्य है। अगर पुलिस 24 घंटे में जाँच पूरी नहीं कर पाती और आरोपी को रोकना आवश्यक समझती है तो मजिस्ट्रेट से रिमांड (पुलिस या न्यायिक कस्टडी) की अनुमति लेनी होगी; इसके लिए भी मजिस्ट्रेट के समक्ष तर्कसंगत कारण प्रस्तुत करने पड़ते हैं और रिमांड सीमित अवधि के लिए ही दिया जाता है। Section 167 CrPC इन प्रक्रियाओं का नियम रखता है। रिमांड का मतलब यह नहीं कि पुलिस सदैव असीमित समय तक रख सकती है; न्यायिक निगरानी रहती है। FIR, जाँच, चार्जशीट और मुक़दमे की प्रक्रिया अगर कोई cognizable शिकायत आती है तो पुलिस FIR दर्ज करके जाँच शुरू करती है। जाँच पूरा होने पर पुलिस अपनी रिपोर्ट

—जिसे चार्जशीट या Final Report भी कहा जाता है—मजिस्ट्रेट के पास भेजती है (धारा 173 CrPC के अनुसार)। इसके बाद मजिस्ट्रेट यह तय करता है कि क्या कोर्ट में मामला चलना चाहिए, आरोप तय किए जाएँ और ट्रायल शुरू हो। चार्जशीट दाखिल होने का मतलब है कि पुलिस ने पर्याप्त सबूत इकठ्ठा कर लिए हैं और मामले को अदालत के पास भेज दिया है। गिरफ़्तारी का मतलब सजा नहीं 

— सजा तभी मुमकिन है जब कोर्ट दोषी ठहराए यह बहुत महत्वपूर्ण बात है: गिरफ्तारी और दोष सिद्ध होना (conviction) अलग‑अलग बातें हैं। पुलिस किसी के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज करके उसे गिरफ्तार कर सकती है या हिरासत में रख सकती है, पर सजा तभी मिलेगी जब अदालत ने सभी सबूतों और बचाव सुनने के बाद व्यक्ति को दोषी ठहराया। कई बार गिरफ्तारी के बाद जांच में साबित हो सकता है कि व्यक्ति निर्दोष है 

— तब उसे बरी किया जा सकता है। इसलिए गिरफ्तारी का अर्थ इतना गंभीर नहीं जितना कि दोष सिद्ध होने पर मिलने वाली सजा। बेल/जमानत (bail) की स्थिति अपराध के प्रकार (bailable या non‑bailable) और आरोप की गंभीरता पर जमानत मिलना निर्भर करता है। साधारण मामलों में मजिस्ट्रेट जमानत दे सकता है; गंभीर मामलों में जमानत देने का निर्णय सत्र न्यायालय या हाई कोर्ट पर भी निर्भर कर सकता है। कानूनी प्रक्रियाएँ और केस‑फैक्ट‑विशेष के आधार पर जमानत मुमकिन या असंभव हो सकती है। सुप्रीम‑कोर्ट के निर्देश भी जमानत और गिरफ्तारी के मानदंडों को प्रभावित करते हैं। गिरफ़्तारी में होने वाले अधिकार (अगर आपको गिरफ़्तार किया जाए) 
• गिरफ्तारी के समय आपको गिरफ्तारी का कारण बताया जाना चाहिए। 
 • पुलिस को आपकी व्यक्तिगत जानकारी (नाम, पता) पड़ताल के लिए कहना सामान्य है पर आप बिना वकील की सलाह के लंबी बातें न कहें। 
 • गिरफ्तारी के बाद मजिस्ट्रेट के समक्ष प्रस्तुत करने का अधिकार (24 घंटे का नियम)। 
 • बेल/जमानत का आवेदन करने का अधिकार। 
 • स्वास्थ्य जाँच (यदि ज़रूरत हो) और उचित व्यवहार का अधिकार। अगर आपको लगता है कि गिरफ्तारी अनुचित या अवैध हुई है, तो हाई‑कोर्ट में habeas corpus याचिका या अन्य कानूनी उपाय किए जा सकते हैं। पुलिस की भूमिका और नागरिकों की सावधानियाँ पुलिस का काम जाँच कर आवश्यकता समझने पर गिरफ्तारी करना है, पर नागरिकों के भी कुछ कर्तव्य और सावधानियाँ हैं: झूठी FIR दर्ज न कराएँ, पुलिस को सहयोग दें पर अपनी कानूनी सुरक्षा का भी ध्यान रखें, यदि आपको समन/नोटिस मिला है तो समय पर उपस्थित हों ताकि आप अनावश्यक गिरफ्तारी से बच सकें। अगर किसी को नोटिस (धारा 41A के तहत) दिया गया है तो उसे नोटिस का पालन करना चाहिए; ऐसा करने पर आम तौर पर गिरफ्तारी की संभावना कम रहती है। 

 — सरल शब्दों में 

 1. पुलिस तभी गिरफ्तार करती है जब ठोस शक, शिकायत या सूचना हो और धारा 41 में दिये गए मानदण्ड पूरे हों। 

 2. कई मामलों में पहले नोटिस दे कर पूछताछ की जा सकती है; अनावश्यक गिरफ्तारियों से बचने के लिए Section 41A और सुप्रीम कोर्ट के निर्देश हैं। 

 3. गिरफ्तारी के बाद 24 घंटे के भीतर मजिस्ट्रेट के समक्ष पेश करना अनिवार्य है; रिमांड के लिए मजिस्ट्रेट की अनुमति चाहिए। 

 4. पुलिस की जाँच के बाद चार्जशीट मजिस्ट्रेट के पास भेजी जाती है; सजा तभी होगी जब अदालत दोषी ठहराए।

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